साक़ी की हर निगाह पे बल खा के पी गया
लहरों से खेलता हुआ लहरा के पी गया
बेकैफ़ियों के कैफ़ से घबरा के पी गया
तौबा को तोड़-तोड़ के थर्रा के पी गया
ज़ाहिद ये मेरी शोखी-ए-रिनदाना देखना
रेहमत को बातों-बातों में बहला के पी गया
सरमस्ती-ए-अज़ल मुझे जब याद आ गई
दुनिया-ए-ऎतबार को ठुकरा के पी गया
आज़ुर्दगी ए खातिर-ए-साक़ी को देख कर
मुझको वो शर्म आई कि शरमा के पी गया
ऎ रेहमते तमाम मेरी हर ख़ता मुआफ़
मैं इंतेहा-ए-शौक़ में घबरा के पी गया
पीता बग़ैर इज़्न ये कब थी मेरी मजाल
दरपरदा चश्म-ए-यार की शेह पा के पी गया
इस जाने मयकदा की क़सम बारहा जिगर
कुल आलम-ए-बसीत पर मैं छा के पी गया
1 टिप्पणियाँ:
achha lekh....sankar-shah.blogspot.com
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