बुधवार, मार्च 25, 2009

साक़ी की हर निगाह पे बल खा के पी गया / जिगर मुरादाबादी


साक़ी की हर निगाह पे बल खा के पी गया

लहरों से खेलता हुआ लहरा के पी गया


बेकैफ़ियों के कैफ़ से घबरा के पी गया

तौबा को तोड़-तोड़ के थर्रा के पी गया


ज़ाहिद ये मेरी शोखी-ए-रिनदाना देखना

रेहमत को बातों-बातों में बहला के पी गया


सरमस्ती-ए-अज़ल मुझे जब याद आ गई

दुनिया-ए-ऎतबार को ठुकरा के पी गया


आज़ुर्दगी ए खा‍तिर-ए-साक़ी को देख कर

मुझको वो शर्म आई कि शरमा के पी गया


ऎ रेहमते तमाम मेरी हर ख़ता मुआफ़

मैं इंतेहा-ए-शौक़ में घबरा के पी गया


पीता बग़ैर इज़्न ये कब थी मेरी मजाल

दरपरदा चश्म-ए-यार की शेह पा के पी गया


इस जाने मयकदा की क़सम बारहा जिगर

कुल आलम-ए-बसीत पर मैं छा के पी गया

1 टिप्पणियाँ:

Sankar shah ने कहा…

achha lekh....sankar-shah.blogspot.com