मैं अपने ख़्वाब से बिछ्ड़ा नज़र नहीं आता
तू इस सदी में अकेला नज़र नहीं आता
अजब दबाव है इन बाहरी हवाओं का
घरों का बोझ भी उठता नज़र नहीं आता
मैं इक सदा पे हमेशा को घर छोड़ आया
मगर पुकारने वाला नज़र नहीं आता
मैं तेरी राह से हटने को हट गया लेकिन
मुझे तो कोई भी रस्ता नज़र नहीं आता
धुआँ भरा है यहाँ तो सभी की आँखों में
किसी को घर मेरा जलता नज़र नहीं आता.
बुधवार, अप्रैल 22, 2009
मैं अपने ख़्वाब से बिछ्ड़ा नज़र नहीं आता / वसीम बरेलवी
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