शुक्रवार, अप्रैल 17, 2009

'प्रतीक्षित मन' - सौरभ कुणाल




आज न सही बेशक हो कल
जन्म दिवस का या हो शुभ पल
घड़ी सुबह की आ जाएगी
इत्मिनान का आगे बसेरा होगा
जन्मदिवस कल तेरा होगा।

तकलीफों से हटा हुआ मन
इम्तिहान से निखरा है तन
अंधकार की रात है बेशक
इसके बाद सवेरा होगा
जन्मदिवस कल तेरा होगा।

हल हो जाएगी हर मुश्किल
और कहेगा तेरा दिल
तूफानों को टक्कर देता
वो जलता दीपक मेरा होगा
जन्मदिवस कल मेरा होगा।

भूल जाना तुम हर बाधा
पूरा हो या हो आधा
इंतज़ार की घड़ी ख़त्म कर
ख़ुद के जन्म दिवस का पल
उस समय तुम शान से कहना
ये नया सवेरा मेरा है
जन्मदिवस आज मेरा है।।

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