शुक्रवार, अप्रैल 17, 2009

'मैने कई बार जन्म लिया'- सौरभ कुणाल

'मैने कई बार जन्म लिया'
कभी मानव के रूप में
मिली अपूर्ण आकांक्षाएं।
ईर्ष्या, द्वेष, असत्य,
और अधूरी कामनाएं।
कभी धरती के रूप में
हल से विदीर्ण किया गया।
समय के कालचक्र से
जीर्ण किया गया।
दूसरों की इच्छा से
सपनों को ढालकर तोड़ा।
मौलिकता और लगाव को
अजनवी बनने के डर से छोड़ा।
क्षितिज तक ना पहुंचने की
कई बार निराशा सहा।
मौन रहा, पर
किसी से कुछ ना कहा।

कभी भ्रष्टाचार की
बेड़ियों में जकड़ा गया ।
भौतिकता की आग में
हृदय का सत्य झुलस गया।
पूंजीपतियों के शासन से
जब परिचित हुआ,
मजदूरों की आंखों में
रोटी के लिए तरसना देखा।
आंखों पर अनभिज्ञता की पट्टी बांध
न्याय की मूर्ति ने आज फिर,
अन्याय की विजय का बिगुल बजाया।
हिटलर-मुसोलिनी ने बंदूकें तान
निहत्थों पर झूठा शौर्य दिखाया।
कई बार गांधी का मरना देखा
सुखदेव, भगत सिंह, राजगुरू का
बलि चढ़ना देखा।
ज़िंदगी की कड़वी सच्चाई के बीच भी
हर रोज सूरज का चमकना देखा।
एक विश्वास से कि
क्षणभंगुर आंधी-तूफान भी,
आशा का इंद्रधनुष लाएगी।
खुद की खुशी को नहीं
हाशिए के लोगों को
न्याय दिलाने के लिए
मैने कई बार जन्म लिया'।।
बारिश की बूंदों को
सीपियों में डाल
शांति का मोती बना सकूं।
पैरों तले रौंदे जाने वाले को
कंटीले गुलाब की
पंखुरियां दिखा सकूं।
उनसे कह सकूं कि
जीवन के भंवर में करना होगा
असंख्य संघर्षों का सामना।
इसलिए, आत्मीयता की दूरी में
खुद को तुम थामना।
उन्हीं आदर्शों के साथ
मैने हर बार जीवन जिया
और बार-बार जन्म लिया।।

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