सोमवार, मई 18, 2009

थकी-मांदी हुई बेचारियां आराम करती हैं

थकी - मांदी हुई बेचारियां आराम करती हैं

न छेड़ो ज़ख़्म को बीमारियां आराम करती हैं


सुलाकर अपने बच्चे को यही हर मां समझती है

कि उसकी गोद में किलकारियां आराम करती हैं


किसी दिन ऎ समुन्दर झांक मेरे दिल के सहरा में

न जाने कितनी ही तहदारियां आराम करती हैं


अभी तक दिल में रौशन हैं तुम्हारी याद के जुगनू

अभी इस राख में चिन्गारियां आराम करती हैं


कहां रंगों की आमेज़िश की ज़हमत आप करते हैं

लहू से खेलिये पिचकारियां आराम करती हैं


आमेज़िश=प्रकटन; ज़हमत=कष्ट

0 टिप्पणियाँ: