झूठ बोला था तो यूँ मेरा दहन दुखता है
सुबह दम जैसे तवायफ़ का बदन दुखता है
ख़ाली मटकी की शिकायत पे हमें भी दुख है
ऐ ग्वाले मगर अब गाय का थन दुखता है
उम्र भर साँप से शर्मिन्दा रहे ये सुन कर
जबसे इन्सान को काटा है तो फन दुखता है
ज़िन्दगी तूने बहुत ज़ख़्म दिये है मुझको
अब तुझे याद भी करता हूँ तो मन दुखता है
सोमवार, मई 18, 2009
झूठ बोला था तो यूँ मेरा दहन दुखता है
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें