सोमवार, मई 11, 2009

दुनिया न जीत पाओ तो हारो न खुद को तुम

बदला न अपने आपको जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से अजनबी रहे



अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी
हम जिसके भी क़रीब रहे दूर ही रहे



दुनिया न जीत पाओ तो हारो न खुद को तुम
थोड़ी बहुत तो जे़हन में नाराज़गी रहे



गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो
जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे



हर वक़्त हर मकाम पे हँसना मुहाल है
रोने के वास्ते भी कोई बेकली रहे

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