फूल थे बादल भी था, और वो हसीं सूरत भी थी
दिल में लेकिन और ही इक शक्ल की हसरत भी थी
जो हवा में घर बनाया काश कोई देखता
दस्त में रहते थे पर तामीर की हसरत भी थी
कह गया मैं सामने उसके जो दिल का मुद्दआ
कुछ तो मौसम भी अजब था, कुछ मेरी हिम्मत भी थी
अजनबी शहरों में रहते उम्र सारी कट गई
गो ज़रा से फासले पर घर की हर राहत भी थी
क्या क़यामत है 'मुनीर' अब याद भी आते नहीं
वो पुराने आशना जिनसे हमें उल्फत भी थी
शुक्रवार, मई 01, 2009
फूल थे बादल भी था, और वो हसीं सूरत भी थी / मुनीर नियाज़ी
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