आँखों में थकन धनक बदन पर
जैसे शब-ए-अव्वली दुल्हन पर
दस्तक है हवा-ए-शब के तन पर
खुलता है नया दरीचा फ़न पर
रंगों की जमील बारिशों में
उतरी है बहार फूल-बन पर
थामे हुए हाथ रोशनी का
रख आई क़दम ज़मीं गगन पर
शबनम के लबों पे नाचती है
छाया है अजब नशा किरनपर
खुलती नहीं बर्ग-ओ-गुल की आँखें
जादू कोई कर गया चमन पर
ख़ामोशी कलाम कर रही है
जज़्बात की मुहर है सुख़न पर
रविवार, फ़रवरी 21, 2010
आँखों में थकन धनक बदन पर
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