दिल खून है, हर आँख है नम,
देख रहे हो इस दौर का दस्तूर-ए-करम,
देख रहे हो इंसान से इंसान की बलि मांग रहे हैं
ज़हनों के तराशीदा सनम, देख रहे हो
अखबार में मिलती है सदा खून की सुर्खी
औराक़-ए-सियाह पोश का ग़म देख रहे हो
बेबस है मेरी ज़ात तो मजबूर महज़ तुम
आज़ाद ग़ुलामों के सितम देख रहे हो
इंसान के बचने की कोई राह नहीं है
हर मोड़ पे ये दैर-ओ-हरम देख रहे हो
खुद अपने लिए फ़ैसला-ए-मौत लिखा है
टूटी हुई ये नोक-ए-क़लम देख रहे हो
देखा है हयात हमने उन्हें मौत के मुँह में
तुम जिनको किताबों में रक़म देख रहे हो
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