धूप में निकलो घटाओं में नहाकर देखो
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटाकर देखो।
सिर्फ़ आँखों से ही दुनिया नहीं देखी जाती
दिल की धड़कन को भी बीनाई बनाकर देखो।
पत्थरों में भी ज़ुबाँ होती है दिल होते हैं
अपने घर के दर-ओ-दीवार सजाकर देखो।
वो सितारा है चमकने दो यूँही आँखों में
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बनाकर देखो।
फ़ासिला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है
चाँद जब चमके ज़रा हाथ बढ़ा कर देखो।
शुक्रवार, मार्च 27, 2009
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटाकर देखो
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