शुक्रवार, अप्रैल 17, 2009

'अक्सर मौन रहता हूं'- सौरभ कुणाल

दुनिया की भीड़
उसमें घुली रगीनियां
इसकी विविधता को
देखता हूं, परखता हूं
पर अक्सर मौन रहता हूं।

शांत से चेहरे को
बड़े गौर से देखता हूं
अंदर की भावनाओं को
सोचता हूं, समझता हूं
पर अक्सर मौन रहता हूं।

दबे हुए जज्बातों को
मृतप्राय धड़कनों को,
कुरेदता हूं, पर
मन की खामोशी का
इलाज नहीं देखता हूं,
इसीलिए मौन रहता हूं।।

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