इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं
इन आँखों से वाबस्ता अफ़साने हज़ारों हैं
इक तुम ही नहीं तन्हा उलफ़त में मेरी रुसवा
इस शहर में तुम जैसे दीवाने हज़ारों हैं
इक सिर्फ़ हम ही मय को आँखों से पिलाते हैं
कहने को तो दुनिया में मैख़ाने हज़ारों हैं
इस शम्म-ए-फ़रोज़ाँ को आँधी से डराते हो
इस शम्म-ए-फ़रोज़ाँ के परवाने हज़ारों हैं
टिप्पणी:
इस गज़ल को शहरयार ने फ़िल्म "उमराव जान" के
लिये लिखा था। फ़िल्म में नायिका उमराव जान एक
शायरा भी हैं और उनका तख़ल्लुस "अदा" है।
बुधवार, जून 03, 2009
इन आँखों की मस्ती के
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