बुधवार, जून 03, 2009

ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में

ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें
ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें



सुर्ख़ फूलों से महक उठती हैं दिल की राहें
दिन ढले यूँ तेरी आवाज़ बुलाती है हमें



याद तेरी कभी दस्तक कभी सरगोशी से
रात के पिछले पहर रोज़ जगाती है हमें



हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ है
अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें




टिप्पणी:
इस गज़ल को शहरयार ने फ़िल्म "उमराव जान"
के लिये लिखा था। फ़िल्म में नायिका उमराव जान
एक शायरा भी हैं और उनका तख़ल्लुस "अदा" है।

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