मैं नहीं जागता, तुम जागो
सियाह रात की जुल्फ, इतनी उलझी है कि सुलझा नहीं सकता
बारहा* कर चुका कोशिश मैं तो
तुम भी अपनी सी करो
इस तगो-दौ* के लिए ख्वाब मेरे हाजिर हैं
नींद इन ख्वाबों के दरवाजों से लौट जाती है
सुनो, जागने के लिए इनका होना
सहूल कर देगा बहुत कुछ तुम पर
आसमां रंग में कागज की नाव
रुक गई है इसे हरकत में लाओ
और क्या करना है तुम जानते हो
मैं नहीं जागता, तुम जागो
सियाह रात की जुल्फ
इतनी उलझी है कि सुलझा नहीं सकता
# कई बार
# दौड़धूप
बुधवार, जून 03, 2009
मैं नहीं जागता
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