चांदनी
उस दरीचे को छूकर
मेरे नीम रोशन झरोखे में आए, न आए,
मगर
मेरी पलकों की तकदीर से नींद चुनती रहे
और उस आँख के ख़्वाब बुनती रहे।
सोमवार, फ़रवरी 22, 2010
दुआ
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चांदनी
उस दरीचे को छूकर
मेरे नीम रोशन झरोखे में आए, न आए,
मगर
मेरी पलकों की तकदीर से नींद चुनती रहे
और उस आँख के ख़्वाब बुनती रहे।
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