मंगलवार, मई 05, 2009

'ग़म-ए-आशिकी' सौरभ कुणाल

एक कसक भी न उठी दिल में
जब तक वो मेरे पास थे
आज जब वो दूर हैं
उनकी यादों में अश्क बहे जाते हैं।

जब तक वो थे मेरे सामने
मेरे लिए कुछ भी न थे
आज जब वो गुम हैं
मेरी ज़िन्दगी पर उन्हीं का नाम है।

कोई बात न दिखी मुझे उनमें
जब तक वो मेरे आशियां में पड़े थे
आज उनकी हर बात याद आती है
जब वो मेरी गलियों से दूर खड़े हैं।

उनकी मुस्कान भी न दिखी तब
आज आंसू भी याद आते हैं
मेरी महफिल से दूर जाकर
वो अपना सा नज़र आते हैं।

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