मंगलवार, मई 05, 2009

'बहके जज्बात' - सौरभ कुणाल

बहके बहके हैं जज्बात
बहकी हैं संवेदनाएं
चमन में उनके आने से
महकी है फिजाएं।।

अरमानों की महफिल
सज सी गई हैं
दबी धड़कनों को
आवाज़ मिल गई है।।

आंखों का साथ देने को
तैयार है घटाएं
बहके बहके हैं जज्बात
बहकी हैं संवेदनाएं।।

उखड़ी-उखड़ी है सांसें
उलझी है बातें
आवाज़ खो जाने से
खामोश है रातें।।

जीवन के हर किरदार
बदल से गए हैं
शांत मन में लहरें
उफन से गए हैं।।

दिल में दर्द जगाने को
बेकरार है हवाएं
बहके बहके हैं जज्बात
बहकी हैं संवेदनाएं।।

0 टिप्पणियाँ: