ऐ भारतवासी !
आप किधर जा रहे हो
सांप्रदायिता के दलदल में
क्यूंकर धंसे जा रहे हो !
गौरवमयी संस्कृति को
पल में भुलाकर
अंध विश्वास के पाश में
बंधे जा रहे हो।।
सारे जहां में चित्रित थे
हम धार्मिक सहिष्नुता के लिए
आज हमारा परिचय भी
धार्मिक उग्रता से दिया जाता है।।
आज यहां सत्य के लिए
कोई मिटता नहीं
वरन सत्य को ही
मिटा दिया जाता है।।
मंगलवार, मई 05, 2009
'दलदल में देश' - सौरभ कुणाल
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