मंगलवार, मई 05, 2009

'दुनिया का छद्म' - सौरभ कुणाल

दुनिया के रंग ढंग
बड़े हैं निराले
कहीं ग़मों के अंधेरे
कहीं खुशियों के उजाले।।

कहीं है गर्मजोशी
कहीं बस ठंडी आहें
एक ही पे टिकी है
कहीं सैकड़ों निगाहें।।

कहीं विश्वास के आसमां में
कुछ शक से हैं बादल
हर जगह से वो बच के
विचारों से हैं घायल।।

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