सोमवार, मई 04, 2009

और सब भूल गए हर्फे-सदाक़त लिखना

और सब भूल गए हर्फे-सदाक़त लिखना
रह गया काम हमारा ही बगावत लिखना

न सिले की न सताइश की तमन्ना हमको
हक में लोगों के हमारी तो है आदत लिखना.

हम ने तो भूलके भी शह का कसीदा न लिखा
शायद आया इसी खूबी की बदौलत लिखना.

दह्र के ग़म से हुआ रब्त तो हम भूल गए
सर्व-क़ामत की जवानी को क़यामत लिखना.

कुछ भी कहते हैं कहें शह के मुसाहिब 'जालिब'
रंग रखना यही अपना, इसी सूरत लिखना

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