सोमवार, मई 04, 2009

यही हालात इब्तदा से रहे

यही हालात इब्तदा से रहे
लोग हमसे ख़फ़ा ख़फ़ा से रहे



बेवफ़ा तुम कभी न थे लेकिन
ये भी सच है कि बेवफ़ा से रहे



इन चिराग़ों में तेल ही कम था
क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे



बहस, शतरंज, शेर, मौसीक़ी
तुम नहीं रहे तो ये दिलासे रहे



उसके बंदों को देखकर कहिये
हमको उम्मीद क्या ख़ुदा से रहे



ज़िन्दगी की शराब माँगते हो
हम को देखो कि पी के प्यासे रहे

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