सोमवार, मई 04, 2009

मिसाल इसकी कहाँ है

मिसाल इसकी कहाँ है ज़माने में
कि सारे खोने के ग़म पाये हमने पाने में



वो शक्ल पिघली तो हर शै में ढल गई जैसे
अजीब बात हुई है उसे भुलाने में



जो मुंतज़िर न मिला वो तो हम है शर्मिंदा
कि हमने देर लगा दी पलट के आने में



लतीफ़ था वो तख़ैय्युल से, ख़्वाब से नाज़ुक
गवा दिया हमने ही उसे आज़माने में



समझ लिया था कभी एक सराब को दरिया
पर एक सुकून था हमको फ़रेब खाने में



झुका दरख़्त हवा से, तो आँधियों ने कहा
ज़ियादा फ़र्क़ नहीं झुक के टूट जाने में

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