मंगलवार, जून 02, 2009

देर तक बारिश हुई।

शाम को इंजीर के पत्तों के पीछे

एक सरगोशी बरहना पाँव

इतनी तेज़ दौड़ी

मेरा दम घुटने लगा

रेत जैसे ज़ायक़े वाली किसी मशरूब की ख़्वाहिश हुई

वह वहाँ कुछ दूर एक आंधी चली

फिर देर तक बारिश हुई।


शब्दार्थ :

मशरूब=पेय

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