स्याह-सफ़ेद डालकर साए
मेरा रंग पूछने आए !
मैं अपने में कोरा-सादा
मेरा कोई नहीं इरादा
ठोकर मर-मारकर तुमने
बंजर उर में शूल उगाए ।
स्याह-सफ़ेद डालकर साए
मेरा रंग पूछने आए !
मेरी निंदियारी आँखों का-
कोई स्वप्न नहीं; पाँखों का-
गहन गगन से रहा न नता,
क्यों तुमने तारे तुड़वाए ।
स्याह-सफ़ेद डालकर साए
मेरा रंग पूछने आए !
मेरी बर्फ़ीली आहों का
बुझी धुआँती-सी चाहों का-
क्या था? घर में आग लगाकर
तुमने बाहर दिए जलाए !
स्याह-सफ़ेद डालकर साए
मेरा रंग पूछने आए !
मंगलवार, अप्रैल 19, 2011
स्याह-सफ़ेद
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1 टिप्पणियाँ:
जानकी वल्लभ शास्त्री जी की कविता पढवाने के लिए आभार॥
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