मंगलवार, अप्रैल 19, 2011

कितना निठुर यह उपहास

कितना निठुर यह उपहास !
जो अजाने ही गया, वह था मधुर मधुमास !
कितना निठुर यह उपहास !!

अश्रु-'कण' कहकर जिसे


मैंने बहाया हाय !

सूक्ष्म रूप धरे वही था -


हृदयहारी हास !

कितना निठुर यह उपहास !


स्वप्न-सुख की आस में
सोया रहा दिन-रात,
वह गया नित लौट -
शत-शत बार आकर पास !


कितना निठुर यह उपहास !

('रूप-अरूप)

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