मंगलवार, अप्रैल 19, 2011

माझी, उसको मझधार न कह !

रुक गयी नाव जिस ठौर स्वयं,
माझी, उसको मझधार न कह !

कायर जो बैठे आह भरे
तूफानों की परवाह करे

हाँ, तट तक जो पहुँचा न सका,
चाहे तू उसको ज्वार न कह !

कोई तम को कह भ्रम, सपना
ढूँढे, आलोक-लोक अपना,

तव सिन्धु पार जाने वाले को,
निष्ठुर, तू बेकार न कह !

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