रविवार, अप्रैल 26, 2009

मैं जीवन का शंका महान / हरिवंशराय बच्चन

मैं जीवन का शंका महान!


युग-युग संचालित राह छोड़,

युग-युग संचित विश्‍वास ताड़!

मैं चला आज युग-युग सेवित,

पाखंड-रुढ़‍ि के बैर ठान।

मैं जीवन का शंका महान!


होगी न हृदय में शांति व्‍यापक,

कर लेता जब तक नहीं प्राप्‍त,

जग-जीवन का कुछ नया अर्थ,

जग-जीवन का कुछ नया ज्ञान।

मैं जीवन का शंका महान!


गहनांधकार में पाँव धार,

युग नयन फाड़, युग कर पसार,

उठ-उठ, गिर-गिरकर बार-बार

मैं खोज रहा हूँ अपना पथ,

अपनी शंका का समाधान।

मैं जीवन का शंका महान!

0 टिप्पणियाँ: