इतने मत उन्मत्त बनो!
जीवन मधुशाला से मधु पी
बनकर तन-मन-मतवाला,
गीत सुनाने लगा झुमकर
चुम-चुमकर मैं प्याला-
शीश हिलाकर दुनिया बोली,
पृथ्वी पर हो चुका बहुत यह,
इतने मत उन्मत्त बनो।
इतने मत संतप्त बनो।
जीवन मरघट पर अपने सब
आमानों की कर होली,
चला राह में रोदन करता
चिता-राख से भर झोली-
शीश हिलाकर दुनिया बोली,
पृथ्वी पर हो चुका बहुत यह,
इतने मत संतप्त बनो।
इतने मत उत्तप्त बनो।
मेरे प्रति अन्याय हुआ है
ज्ञात हुआ मुझको जिस क्षण,
करने लगा अग्नि-आनन हो
गुरू-गर्जन, गुरूतर गर्जन-
शीश हिलाकर दुनिया बोली,
पृथ्वी पर हो चुका बहुत यह,
इतने मत उत्तप्त बनो।
रविवार, अप्रैल 26, 2009
इतने मत उन्मत्त बनो / हरिवंशराय बच्चन
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