काल क्रम से-
जिसके आगे झंझा रूते,
जिसके आगे पर्वत झुकते-
प्राणों का प्यारा धन-कंचन
सहसा अपहृत हो जाने पर
जीवन में जो कुछ बचता है,
उसका भी कुछ है आकर्षण।
नियति नियम से-
जिसको समझा सुकरात नहीं-
जिसको बुझा बुकरात नहीं-
क़िस्मत का प्यारा धन-कंचन
सहसा अपहृत हो जाने पर
जीवन में जो कुछ बचता है,
उसका भी कुछ है आकर्षण।
आत्म भ्रम से-
जिससे योगी ठग जाते हैं,
गुरू ज्ञानी धोखा खाते हैं-
स्वप्नों का प्यारा धन-कंचन
सहसा अपहृत हो जाने पर
जीवन में जो कुछ बचता है,
उसका भी कुछ है आकर्षण।
कालक्रम से, नियति-नियति से,
आत्म भ्रम से
रह न गया जो, मिल न सका जो,
सच न हुआ जो,
प्रिय जन अपना, प्रिय धन अपना,
अपना सपना,
इन्हें छोड़कर जीवन जितना,
उसमें भी आकर्षक कितना!
रविवार, अप्रैल 26, 2009
काल क्रम से- / हरिवंशराय बच्चन
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