रविवार, अप्रैल 26, 2009

कर्तव्‍य / हरिवंशराय बच्चन

देवि, गया है जोड़ा यह जो

मेरा और तुम्‍हारा नाता,

नहीं तुम्‍हारा मेरा केवल,

जग-जीवन से मेल कराता।


दुनिया अपनी, जीवन अपना,

सत्‍य, नहीं केवल मन-सपना;

मन-सपने-सा इसे बनाने

का, आओ, हम तुम प्रण ठानें।


जैसी हमने पाई दुनिया,

आओ, उससे बेहतर दोड़ें,

शुचि-सुंदरतर इसे बनाने

से मुँह अपना कभी न मोड़ें।


क्‍यों कि नहीं बस इससे नाता

जब तक जीवन-काल हमारा,

खेल, कूद, पढ़, बढ़ इसमें ही

रहने को है लाल हमारा।

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