मुझसे निगाहें चुराना
तेरे इनकार की हद थी।।
तेरा तल्ख चेहरा,
मेरा फिर भी मुस्कुराना
मेरे इकरार की हद थी।।
ग़ैर की महफिल में जाना
फिर भी अपना समझना
मेरे एतबार की हद थी।।
मिट जाना, खो जाना
इस जहां से दूर जाना
मेरे प्यार की हद थी।
तेरी चाहत का एक शोला
मुद्दतों सीने में दबाया रहा
बेसबब सी मेरी खामोशी
मेरे इंतज़ार की हद थी।
मंगलवार, मई 05, 2009
'प्यार की हद' - सौरभ कुणाल
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियाँ:
आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी
धन्यवाद गार्गी जी....
एक टिप्पणी भेजें