चल पड़े हैं तो कहीं जा के ठहरना होगा
ये तमाशा भी किसी दिन हमें करना होगा
रेत का ढेर थे हम, सोच लिया था हम ने
जब हवा तज़ चलेगी तो बिखरना होगा
हर नए मोड़ प' ये सोच क़दम रोकेगी
जाने अब कौन सी राहों से गुज़रना होगा
ले के उस पार न जाएगी जुदा राह कोई
भीड़ के साथ ही दलदल में उतरना होगा
ज़िन्दगी ख़ुद ही इक आज़ार है जिस्मो-जाँ का
जीने वालों को इसी रोग में मरना होगा
क़ातिले-शहर के मुख़बिर दरो-दीवार भी हैं
अब सितमगर उसे कहते हुए डरना होगा
आए हो उसकी अदालत में तो 'मख़्मूर' तुम्हें
अब किसी जुर्म का इक़रार तो करना होगा
रविवार, अगस्त 02, 2009
चल पड़े हैं तो कहीं जाकर ठहरना होगा
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें