रविवार, अगस्त 02, 2009

अपना यही है सहन यही सायबान है

अपना यही है सहन यही सायबान है

फैली हुई ज़मीन खुला आस्मान है


चारो तरफ़ हवा की लचकती कमान है

ये शाख से परिन्द की पहली उड़ान है


जो चल पड़े हैं कश्ती-ए-मौजे-रवाँ लिए

चादर हवा की उनके लिए बादबान है


क़ुर्बत की साअतों में भी कुछ दूरियाँ-सी हैं

साया किसी का उन के मिरे दर्मियान है


आँखों में तिरे ख़्वाब न दिल में तिरा ख़याल

अब मेरी ज़िन्दगी कोई ख़ाली मकान है


'मख़्मूर' इस सफ़र में न साया तलाश कर

इन रास्तों पे धूप बहुत मेहरबान है


शब्दार्थ :

सहन=आँगन; सायबान=छप्पर; कश्ती-ए-मौजे-रवाँ=बहते हुए पानी की लहर की नाव; बादबान=पाल; क़ुर्बत=सामीप्य; साअतों=क्षणों।

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