जहाँ मैं जाऊँ हवा का यही इशारा हो|
कोई नहीं जो यहाँ मुन्तज़िर तुम्हारा हो|
मेरी बुझती हुई आँखों को रौशनी बख़्शे,
वो फूल जो तेरे चेहरे का इस्त'अरा हो|
चला हूँ अपनी ही आवाज़-ए-बाज़्गश्त पे यूँ,
किसी ने दूर से जैसे मुझे पुकारा हो|
गँवा चुके कई उम्रें उम्मीद्वार तेरे,
कहाँ तक और तेरी बेरुख़ी गवारा हो|
तू पास आते हुये मुझ से दूर हो जाये,
अजब नहीं कि यही हादसा दोबारा हो|
नज़र फ़रेबी-ए-रंग-ए-चमन से बच 'मख्मूर',
जिसे तू फूल समझ ले कहीं शरारा हो|
रविवार, अगस्त 02, 2009
जहाँ मैं जाऊँ हवा का यही इशारा हो
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