मंगलवार, अप्रैल 14, 2009

कुछ न किसी से बोलेंगे / फ़राज़

कुछ न किसी से बोलेंगे
तन्हाई में रो लेंगे



हम बेरहबरों का क्या
साथ किसी के हो लेंगे



ख़ुद तो हुए रुसवा लेकिन
तेरे भेद न खोलेंगे



जीवन ज़हर भरा साग़र
कब तक अमृत घोलेंगे



नींद तो क्या आयेगी "फ़राज़"
मौत आई तो सो लेंगे

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