तुम भी ख़फ़ा हो लोग भी बेरहम हैं दोस्तो
अब हो चला यक़ीं के बुरे हम हैं दोस्तो
किस को हमारे हाल से निस्बत है क्या करें
आँखें तो दुश्मनों की भी पुरनम हैं दोस्तो
अपने सिवा हमारे न होने का ग़म किसे
अपनी तलाश में तो हम ही हम हैं दोस्तो
कुछ आज शाम ही से है दिल भी बुझा-बुझा
कुछ शहर के चिराग़ भी मद्धम हैं दोस्तो
इस शहर-ए-आरज़ू से भी बाहर निकल चलो
अब दिल की रौनक़ें भी कोई दम हैं दोस्तो
सब कुछ सही "फ़राज़" पर इतना ज़रूर है
दुनिया में ऐसे लोग बहुत कम हैं दोस्तो
मंगलवार, अप्रैल 14, 2009
तुम भी ख़फ़ा हो लोग भी बेरहम हैं दोस्तो / फ़राज़
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