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स्याह...
मंगलवार, मई 12, 2009
कुछ खो दिया है
कुछ
खो दिया है
पाइके
कुछ
पा लिया
गवाइके।
कहाँ
ले चला है
मनवा
मोहे
बाँवरी
बनाइके।
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हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
दो दो हिंदुस्तान
स्पर्श
स्केच
साँस लेना भी कैसी आदत है
शाम से आँख में नमी सी है
वो जो शायर था चुप सा रहता था
वो ख़त के पुरज़े उड़ा रहा था
वैन गॉग का एक ख़त
वक़्त को आते न जाते न गुजरते देखा
लैंडस्केप-1
लैंडस्केप-2
रिश्ते बस रिश्ते होते हैं
रात भर सर्द हवा चलती रही
मौत तू एक कविता है
अपने घर में ही अजनबी हो गया हूँ
मुझको भी तरकीब सिखा
पेंटिंग-1
पेंटिंग-2
पेंटिंग-3
नज़्म उलझी हुई है सीने में
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जिहाल-ए-मिस्कीं मुकों बा-रंजिश
ज़िन्दगी यूँ हुई बसर तन्हा
चलो ना भटके
त्रिवेणियाँ
ख़ुमानी अख़रोट
कुछ खो दिया है
किताबें झाँकती हैं बंद आलमारी के शीशों से
क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं
एक में दो
एक पुराना मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी
तेरी आवाज़ सुनाई दी है
ईंधन
इक जरा छींक ही दो तुम
आम
आदतन तुम ने कर दिए वादे
आँखों में जल रहा है...
अमलतास
अफ़साने
न जाने क्या कहना था
कुछ भी तो नहीं बदला...
कितनी सदियों से ढूँढ़ती होंगी
तेरी आँखें तेरी ठहरी हुई ग़मगीन-सी आँखें
मुझको इतने से काम पे रख लो
सेज पर साधें बिछा लो
साँसों के मुसाफिर
विश्व चाहे या न चाहे
लेकिन मन आज़ाद नहीं है
यदि मैं होता घन सावन का॥
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं
तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं॥
तिमिर तूफान मेरा क्या करेगा
मेरा गीत दिया बन जाये!!
मेरा इतिहास नहीं है!
मुस्कुराकर चल मुसाफिर॥
मुझको याद किया जाएगा
तब मानव कवि बन जाता है !
मगर निठुर न तुम रुके
बूढ़े अंबर से माँगो मत पानी
बहार आई
गमन की बात न करना!
बन्द करो मधु की रस-बतियां
प्रेम-पथ हो न सूना
प्यार की कहानी चाहिए
पीर मेरी, प्यार बन जा !
पिया दूर है न पास है
'नीरज' गा रहा है
छीन ली अब नींद भी मेरे नयन की।
नारी
धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ!
दो गुलाब के फूल....
दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था|
दिया जलता रहा
तुम्हारे बिना आरती का दीया यह
तुम ही नहीं मिले जीवन में
जग का तम दूर करो
तुम झूम झूम गाओ
फिर दीप जलेगा, तिमिर ढलेगा!
तब मेरी पीड़ा अकुलाई!
जीवन जहाँ खत्म हो जाता !
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
थक गए पैर फिर भी चलता जाता हूँ!
खग! उड़ते रहना जीवन भर !
किसलिए आऊं तुम्हारे द्वार
कितने दिन चलेगा
कितनी अतृप्ति है...
एक तरे बिना प्राण ओ प्राण के !
आदमी को प्यार दो
आज मदहोश हुआ जाए रे
अभी न जाओ प्राण!
बुलाऊँ भी तुम्हें तो तुम न आना!
मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए।
अब तुम्हारा प्यार भी
अब तुम रूठो
अंधियार ढल कर ही रहेगा
अंतिम बूँद
नीरज दोहावली
आज है तेरा जनम दिन
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