मंगलवार, मई 12, 2009

अफ़साने

खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में
एक पुराना खत खोला अनजाने में



जाना किसका ज़िक्र है इस अफ़साने में
दर्द मज़े लेता है जो दुहराने में



शाम के साये बालिस्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में



रात गुज़रते शायद थोड़ा वक्त लगे
ज़रा सी धूप दे उन्हें मेरे पैमाने में



दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है
किसकी आहट सुनता है वीराने मे ।

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