खग! उड़ते रहना जीवन भर !
भूल गया है तू अपना पथ,
और नहीं पंखो मे गति,
किंतु लौटना पीछे पथ पर अरे, मौत से भी बदतर |
खग! उड़ते रहना जीवन भर !
मत डर प्रलय झकोरों से तू ,
बढ आशा हलकोरों से तू ,
छ्न मे यह अरि-दल मिट जाएगा तेरे पंखो से पिस कर |
खग! उड़ते रहना जीवन भर !
यदि तू लौट पड़ेगा थक कर,
अंधड़ काल बवंडर से डर,
प्यार तुझे करने वाले ही देखेंगे तुझको हँस हँस कर,
खग! उड़ते रहना जीवन भर !
और मिट गया चलते चलते,
मंजिल पथ तय करते करते,
तेरी ख़ाक चढाएगा जग उन्नत भाल और आँखों पर |
खग! उड़ते रहना जीवन भर !
मंगलवार, मई 12, 2009
खग! उड़ते रहना जीवन भर !
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें