मोहब्बत करने वालों में ये झगडा डाल देती है
सियासत दोस्ती की जड में मट्ठा दाल देती है
तवायफ की तरह अपनी गलतकारी के चेहरे पर
हुकूमत मंदिर और मस्जिद का पर्दा डाल देती है
हुकूमत मुंहभराई के हुनर से खूब वाकिफ है
ये हर कुत्ते के आगे शाही टुकडा डाल देती है
कहां की हिजरतें कैसा सफर कैसा जुदा होना
किसी की चाह पैरों पर दुपट्टा डाल देती है
ये चिडिया भी मेरी बेटी से कितनी मिलती जुलती है
कहीं भी शाखे गुल देखे तो झूला डाल देती है
भटकती है हवस दिन रात सोने की दुकानों में
गरीबी कान छिदवाती है तिनका डाल देती है
रविवार, मई 17, 2009
मोहब्बत करने वाला ज़िन्दगी भर कुछ नहीं कहता
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