हम पर अब इस लिए ख़ंजर नहीं फेंका जाता
ख़ुश तालाब में कंकर नहीं फेंका जाता
उसने रक्खा है हिफ़ाज़त से हमारे ग़म को
औरतों से कभी ज़ेवर नहीं फेंका जाता
मेरे अजदाद ने रोके हैं समन्दर सारे
मुझसे तूफ़ान में लंगर नहीं फेंका जाता
लिपटी रहती है तेरी याद हमेशा हमसे
कोई मौसम हो ये मफ़लर नहीं फेंका जाता
जो छिपा लेता हो दीवार की उरयानी को
दोस्तो, ऐसा कलंडर नहीं फेंका जाता
गुफ़्तगू फ़ोन पे हो जाती है साहिब
अब किसी छत पे कबूतर नहीं फेंका जाता
रविवार, मई 17, 2009
हम पर अब इस लिए ख़ंजर नहीं फैंका जाता
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