हालाँकि हमें लौट के जाना भी नहीं है
कश्ती मगर इस बार जलाना भी नहीं है
तलवार न छूने की कसम खाई है लेकिन
दुश्मन को कलेजे से लगाना भी नहीं है
यह देख के मक़तल में हँसी आती है मुझको
सच्चा मेरे दुश्मन का निशाना भी नहीं है
मैं हूँ मेरी बच्चा है, खिलौनों की दुकाँ है
अब कोई मेरे पास बहाना भी नहीं है
पहले की तरह आज भी हैं तीन ही शायर
यह राज़ मगर सब को बताना भी नहीं है
रविवार, मई 17, 2009
हालाँकि हमें लौट के जाना भी नहीं है
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