सबके कहने से इरादा नहीं बदला जाता
हर सहेली से दुपट्टा नहीं बदला जाता
हम कि शायर हैं सियासत नहीं आती हमको
हमसे मँह देख के लहजा नहीं बदला जाता
हम फ़क़ीरों को फ़क़ीरी का नशा रहता है
वरना क्या शहर में शजरा नहीं बदला जाता
ऐसा लगता है कि वो भूल गया है हमको
अब कभी खिड़की का पर्दा नहीं बदला जाता
अब रुलाया है तो हँसने पे न मजबूर करो
रोज़ बीमार का नुस्ख़ा नहीं बदला जाता
ग़म से फ़ुर्सत ही कहाँ है कि तुझे याद करूँ
इतनी लाशें हों तो काँधा नहीं बदला जाता
उम्र इक तल्ख़ हक़ीक़त है ‘मुनव्वर’ फिर भी
जितने तुम बदले हो उतना नहीं बदला जाता.
रविवार, मई 17, 2009
सबके कहने से इरादा नहीं बदला जाता
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