रविवार, मई 17, 2009

हँसते हुए माँ-बाप की गाली नहीं खाते

हँसते हुए माँ-बाप की गाली नहीं खाते
बच्चे हैं तो क्यों शौक़ से मिट्टी नहीं खाते

तुमसे नहीं मिलने का इरादा तो है लेकिन
तुमसे न मिलेंगे ये क़सम भी नहीं खाते

सो जाते हैं फुटपाथ पे अख़बार बिछा कर
मज़दूर् कभी नींद की गोली नहीं खाते

बच्चे भी ग़रीबी को समझने लगे शायद
अब जाग भी जाते हैं तो सहरी नहीं खाते

दावत तो बड़ी चीज़ है हम जैसे क़लंदर
हर एक के पैसों की दवा भी नहीं खाते

अल्लाह ग़रीबों का मददगार है ‘राना’
हम लोगों के बच्चे कभी सर्दी नहीं खाते

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