रविवार, मई 17, 2009

हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते हैं

हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते हैं
जैसे बच्चे भरे बाज़ार में खो जाते हैं



नये कमरों में अब चीजें पुरानी कौन रखता है
परिंदों के लिए शहरों में पानी कौन रखता है



मोहाजिरो यही तारीख है मकानों की
बनाने वाला हमेशा बरामदों में रहा



तुझसे बिछड़ा तो पसंद आ गयी बे-तरतीबी
इससे पहले मेरा कमरा भी ग़ज़ल जैसा था



किसी भी मोड़ पर तुमसे वफ़ा-दारी नहीं होगी
हमें मालूम है तुमको यह बीमारी नहीं होगी



तुझे अकेले पढूँ कोई हम-सबक न रहे
में चाहता हूँ कि तुझ पर किसी का हक न रहे



तलवार तो क्या मेरी नज़र तक नहीं उठी
उस शख्स के बच्चों की तरफ देख लिया था



फ़रिश्ते आके उनके जिस्म पर खुश्बू लगाते हैं
वो बच्चे रेल के डिब्बे में जो झाडू लगाते हैं



किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दूकान आई
में घर में सबसे छोटा था मेरी हिस्से में माँ आई



सिरफिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जां कहते हैं
हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं

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