सुन्दरता ख़ुद से ही शरमा जाए
यदि वाणी भी मिल जाए दर्पण को !
खुबसूरत है हर फूल मगर उसका
कब मोल चुका पाया है सब मधुबन ?
जब प्रेम समर्पण देता है अपना
सौन्दर्य तभी करता है निज दर्शन,
अर्पण है सृजन और रुपान्तर भी,
पर अन्तर-योग बिना है नश्वर भी,
सच कहता हूँ हर मूरत बोल उठे
दो अश्रु हृदय दे दे यदि पाहन को !
सुन्दरता ख़ुद से ही शरमा जाए
यदि वाणी भी मिल जाए दर्पण को।
सौ बार भरी गगरी आ बादल ने
प्यासी पुतली यह किन्तु रही प्यासी,
साँसों ने जाने कैसा शाप दिया
बन गई देह हर मरघट की दासी
दुख ही दुख है जग में सब ओर कहीं,
लेकिन सुख का यह कहना झूठ नहीं,
‘सब की सब सृष्टि खिलौना बन जाए
यदि नज़र उमर की लगे न बचपन को !’
सुन्दरता ख़ुद से ही शरमा जाए
यदि वाणी मिल जाए दर्पण को !
रुक पाई अपनी हँसी न कलियों से
दुनिया ने लूट इसी से ली बगिया
इस कारण कालिख मुख पर मली गई
बदशक्ल रात पर मरने लगा दिया,
तुम उसे गालियाँ दो, कुछ बात नहीं
लेकिन शायद तुमको यह ज्ञात नहीं,
आदमी देवता ही होता जग में
भावुकता अगर न मिलती यौवन को !
सुन्दरता ख़ुद से ही शरमा जाए !
यदि वाणी भी मिल जाए दर्पण को !
है धूल बहुत नाचीज़ मगर मिटकर
दे गई रूप अनगिन प्रतिमाओं को,
पहरेदारी में किसी घोंसले की
तिनके ने रक्खा क़ैद हवाओं को,
निर्धन दुर्बल है, सबका नौकर है
और धन हर मठ-मन्दिर का ईश्वर है
लेकिन मुश्किलें बहुत कम हो जाएँ
यदि कंचन कहे ग़रीब न रजकण को !
सुन्दरता ख़ुद से ही शरमा जाए
यदि वाणी भी मिल जाए दर्पण को !
चन्दन की छाँव रहे विषधर लेकिन
मर पाया ज़हर न उनके बोलों का,
पर पिया पिया का राग पपीहे को
आ सिखला गया वियोग बादलों को,
चाहे सागर को कंगन पहनाओ-
चाहे नदियों की चूनर सिलवाओ,
उतरेगा स्वर्ग तभी इस धरती पर
जब प्रेम लिखेगा ख़त परिवर्तन को !
सुन्दरता ख़ुद से ही शरमा जाए
यदि वाणी भी मिल जाए दर्पण को !
मंगलवार, मई 12, 2009
यदि वाणी भी मिल जाए दर्पण को !
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें