मंगलवार, अप्रैल 28, 2009

मुहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला / बशीर बद्र

मुहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला



घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला



तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था
फिर इसके बाद मुझे कोई अजनबी न मिला



बहुत अजीब है ये क़ुर्बतों की दूरी भी
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला



ख़ुदा की इतनी बड़ी क़ायनात में मैंने
बस एक शख़्स को माँगा मुझे वो ही न मिला

0 टिप्पणियाँ: