अब किसे चाहें किसे ढूँढा करें
वो भी आख़िर मिल गया अब क्या करें
हल्की हल्की बारिशें होती रहें
हम भी फूलों की तरह भीगा करें
आँख मूँदे उस गुलाबी धूप में
देर तक बैठे उसे सोचा करें
दिल मुहब्बत दीन दुनिया शायरी
हर दरीचे से तुझे देखा करें
घर नया कपड़े नये बर्तन नये
इन पुराने काग़ज़ों का क्या करें
मंगलवार, अप्रैल 28, 2009
अब किसे चाहें किसे ढूँढा करें / बशीर बद्र
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें