मंगलवार, अप्रैल 28, 2009

राख हुई आँखों की / बशीर बद्र

राख हुई आँखों की शम्एं, आँसू भी बेनूर हुए,
धीरे धीरे मेरा दिल पत्थर सा होता जाता है।



अपने दिल है एक परिन्दा जिसके बाजू टूटे हैं,
हसरत से बादल को देखे बादल उड़ता जाता है।



सारी रात बरसने वाली बारीश का मैं आँचल हूँ,
दिन में काँटों पर फैलाकर मुझे सुखाया जाता है।



हमने तो बाजार में दुनिया बेची और खरीदी है,
हमको क्या मालूम किसी को कैसे चाहा जाता है।

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